और शिशिर के होंठो पे अनायास ही मुस्कुराहट आ गयी..और साथ ही उसकी आँखे भर आयी..आँख से आँसू की एक बूँद उसके हाथ पे गिरी तो उसका ध्यान टूटा..और उसने चारो तरफ देखा तो..आसमान मे तारें टिमटिमाने लगे थे..उसने धीरे धीरे अपने हाथों से अपने आँखो को पोछा..वो चुपचाप उठा और धीरे धीरे कदमो से छात्रावास की ओर लौटने लगा..छात्रावास लौट के वो बिस्तर पे चुपचाप लेट गया..खाने पीने की उसको कोई सुध नही है ..लेटे लेटे उसने मेहा का लिखा वो अंतिम पत्र खोला और पढने लगा..पढते-पढते उसकी आँख भर आयी और वो फूट-फूट के रोने लगा..वो बहोत देर तक रोता रहा..रोते रोते उसे कब नींद आ गयी..नही पता..अनुमेहा ने शिशिर को अनगिनत पत्र लिखे हैं..शिशिर आज कल रोज उन पत्रों को पढा करता है..पढते-पढते वो कभी मुस्कुरा उठता और कभी रोने लगता...
शिशिर की रोज की यही दिनचर्या है..वो जब भी सोकर उठता..या तो अपने कमरे मे बिस्तर पे पड़ा रहता..या फिर छात्रावास के बाहर यहाँ-वहाँ दिन भर भटकता रहता..और या तो फिर उस पहाड़ी टीले पे जाके बैठ जाता..देर रात को छात्रावास लौटता..कुछ खाने का मन करता तो ख़ाता नही तो जाके बिस्तर पे चुपचाप लेट जाता..और यदि नींद नही आती तो फिर जाके छत पे बैठा रहता..किसी से कोई बात नही करता..दिन भर उदास और गुमसुम पड़ा रहता है.. पूरे छात्रावास मे हर किसी के होंठो पे सिर्फ़ इसी बात की चर्चा है की शिशिर को क्या हो गया है..क्योकि शिशिर का स्वाभाव बड़ा ही चंचल हसमुख और मिलनसार था ..दिनभर उसके हँसी के ठहाके छात्रावास मे गुँजा करते थे..किंतु अब तो जैसे शिशिर के होंठो पे कोई शब्द ही नही थे..हँसना तो दूर..उसको किसी ने मुस्कुराते भी नही देखा..
अनुमेहा के विवाह को अब १० दिन रह गये है..और शिशिर के भी विद्यालय की पढाई पूरी हो गयी है और अब उसे विश्वविद्यालय मे प्रवेश लेना है..जिसकी परीक्षा अनुमेहा के विवाह के ३ दिन पूर्व है..किंतु शिशिर को तो जाने क्या हो गया..और कोई समय होता तो वो रात दिन एक कर देता पड़ाई के लिए..किंतु अभी तो जैसे पुस्तके उसकी दुश्मन है..पड़ाई तो दूर वो उन पुस्तको को छूता भी नही है..उसे पता है अगर उसने इस बार विश्वविद्यालय मे प्रवेश नही लिया तो उसे साल भर फिर प्रतीक्षा करनी पड़ेगी..और उसका एक साल पूरा बेकार जाएगा..किंतु फिर भी जाने उसे क्या हो गया ..उसका पढाई मे बिल्कुल मन नही लगता है..वो रात दिन कुछ ना कुछ सोचता रहता..बीच बीच मे जब कभी आँखे गीली हो जाती तो धीरे से उनको पोंछ लेता..अजीब मानसिक द्वंद चल रहा है शिशिर के मस्तिष्क मे..दिन पे दिन ये द्वंद तीव्र ही होता जा रहा था..और साथ ही तीव्र होती जा रही थी उसके हृदय की व्याकुलता..किंतु उसे कोई समाधान नही मिल रहा था..
आज शिशिर बहोत देर तक सोता रहा..जब सोकर के उठा तो शाम हो गयी थी..वो आज कही नही गया..अपने कमरे मे ही बिस्तर पे पड़ा रहा..जब सोये-सोये मन उब गया तो जाके छत पे बैठ गया..हल्का-हल्का अंधेरा हो आया है..और आकाश मे चाँद सितारे दिखाने लगे है..उसे याद है ऐसी ही कितनी अनगिनत चाँदनी रातें उसने और मेहा ने साथ-साथ बिताई है..और ऐसी ही एक चाँदनी रात मे मेहा ने उसे..आसमान मे तारों की तरफ दिखाते हुए कहा था .."शिशिर तुम्हे एक सीधी रेखा मे वो तीन तारें दिख रहे है..दिख रहे है ना शिशिर"..(यदि आप लोग रात मे आसमान मे देखेंगे तो वो तीन तारे जो हमेशा एक साथ एक सीधे रेखा मे होते है..आप लोगो को दीख जाएंगे)
"हाँ मेहा"..शिशिर ने कहा.
"शिशिर तुम इनको कही से भी देखोगे ना तो ये तुमको हमेशा ऐसे ही साथ दिखेंगे..तो जब हम लोग नीकॅट भविष्य यदि कभी बीछड़ गये..और जब हम लोगो को एक दूसरे की बहोत याद आएगी ना तो हम लोग इनको देखेंगे...ये तारें हम लोगो को साथ होने का एहसास दिलाएँगे..जैसे ये हमेशा साथ होते है"..अनुमेहा ने कहा.
शिशिर के होंठो पे मुस्कुराहट आ गयी...और वो धीरे-धीरे गुनगुनाने लगा..
"तेरा मेरा प्यार अमर फिर क्यों मुझको लगता है डर
मेरे जीवन साथी बता दिल क्यों धड़के रह-रह कर"
यह वही गाना है जिसे अनुमेहा और शिशिर हमेशा साथ गुनगुनाते थे..और मेहा की आवाज़ मे तो शिशिर को ये गाना बहोत पसंद है..अनुमेहा से मिले शिशिर को लगभग एक महीना हो गया है..और उसके बाद उन दोनो के बीच कोई बात-चीत भी नही हुई..और ना ही शिशिर अनुमेहा से मिलने ही जा सका..शुरू मे तो उसके विद्यालय की परीक्षा थी..तो वो अध्ययन मे व्यस्त रहता..और अनुमेहा की याद थोड़ी कम आती थी.. किंतु जब से उसकी परीक्षा समाप्त हुई है..उसको रात दिन सिर्फ़ अनुमेहा की ही याद आती है..जब-जब उसके मस्तिष्क मे ख़याल आता है की कुछ ही दिनो मे मेहा उससे बहोत दूर चली जाएगी..उसकी आँख भर आती है..और दिल बैठ जाता है..उसे बहोत ही तेज घबराहट होने लगती ..लगता जैसे जीवन मे अब कुछ बचा ही नही है..मन की स्पष्टता जैसे कही खो रही है..सब कुछ धुंधला हो रहा हैं..ऐसी मानसिक स्तिथि उसकी कभी नही रही है..
शिशिर के दिमाग़ मे हर चीज़ हमेशा स्पष्ट रहती थी..उसे आज के पहले कभी दुविधा नही हुई.. क्या करना है..क्या नही करना ..ये उसे बिल्कुल साफ पता होता था..क्या ग़लत है क्या सही है उसकी परिभाषा शिशिर से अच्छा कोई नही दे सकता था..किंतु शिशिर आज बिल्कुल नही समझ पा रहा है की क्या करे..जब ये निर्णय उसने खुद ही लिया की..उन्हे त्याग करना पड़ेगा..अनुमेहा ने भी जब उसके इस निर्णय का सम्मान किया ..उसे भी तो कितना कष्ट हुआ होगा किंतु उसने एक बार भी प्रतिरोध नही किया..तो फिर वो अब वो कमजोर क्यो पड़ रहा है..अजीब सी मानसिक स्तिथि हो गयी है उसकी..रात दिन चौबीसो घंटे सिर्फ़ उसके दिमाग़ मे एक ही बात घूमती रहती की कुछ दिनो मे मेहा चली जाएगी दूर बहोत दूर..
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आज सुबह से ही हल्की हल्की बारिश हो रही है..और अनुमेहा अपने कमरे मे खिड़की पे बैठी है..उसका कमरा घर के पीछे के तरफ है..घर के पिछवाड़े एक छोटा सा लॉन है..जिसमे चारो तरफ विभिन्न रंगो के गुलाब लगे है..और बीच मे थोड़े थोड़े अंतराल पे रजनीगंधा के अनेक पौधे लगे थे..इनको दूर से देख कर लगता था जैसे धरती को किसी ने अनेक रंगो से रंगकर उसपे सफेद रंग छिड़क दिया..और एक तरफ कोने मे छुईमुई का छोटा सा पौधा है..जिसे शिशिर ने लगाया था..शिशिर जिस दिन ये पौधा लेके आया था साथ मे वो टेसू के फूल का भी एक पौधा लेके आया था और ..उसने टेसू के फूल का पौधा अनुमेहा के खिड़की के पास लगाया था और खूब खुश होकर कहा था " मेहा जब ये पौधा बड़ा होगा और जब इसकी टहनियाँ तुम्हारी खिड़की के पास तक आ जायेगी..तब इनको देखना..तुम्हे बहोत अच्छा लगेगा..और तुम्हे मेरे होने का एहसास होगा..और खिलखिला कर हसने लगा था"अनुमेहा बारिश मे भीगते उस टेसू के पेड़ को देखते हुए कहती है.."शिशिर तुम सही कहते थे सचमुच ये टेसू का पेड़ तुम्हारे होने का एहसास दिलाता है..फिर उसने उस छुईमुई के पौधे के देखा जो बारिश के कारण अपने आप मे सिमट के पड़ा है..शिशिर घंटो इस पौधे के पास बैठा रहता..और जब भी छुईमुई की पत्तियाँ विस्तृत होती वो उनको अपने हाथो से छू देता वो फिर से सिमट जाती..और वो खिलखिला के हॅस पड़ता था..अनुमेहा के होंठ हल्के से विस्तृत हो गये..उसने एक दीर्घ स्वॉश लिया ..और खिड़की पर से उठकर..आके कुर्सी पे बैठ गयी..और मेज पे पड़ी पुस्तक उठाकर उसके पन्ने पलटने लगी..
अनुमेहा इस बार स्नातक के अंतिम वर्ष मे है..और उसकी परीक्षा चल रही है..उसकी परीक्षा भी शिशिर के विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा वाले दिन ही समाप्त हो रही है..किंतु पड़ने लिखने मे उसका कुछ ख़ास मन नही लगा रहा है..वो उठी और जाके बिस्तर पे लेट गयी..और इधर उधर की बातें सोचते हुए कब सो गयी पता ही नही चला..
अनुमेहा पहले से थोड़ी दुबली हो गयी है..खाने पीने मे भी उसका कुछ खास मन नही लगता है..किंतु इस बात का उस पूरे घर मे किसी को उसने एहसास नही होने दिया की वो दुखी है..उसने अपने स्वाभाव मे बिल्कुल भी परिवर्तन नही होने दिया है..वो अभी भी पूरे घर मे वैसे ही मुस्कुराते हुए घूमती थी..सबसे खुश होकर मिलती है..जैसे वो पहले रहा करती थी..अनुमेहा की स्तिथि और शिशिर की स्तिथि लगभग-लगभग एक जैसी है सिर्फ़ अंतर है तो इस बात का शिशिर को अभिनय नही करना है..वो जब चाहे रो सकता है ..दिन भर बिना मतलब के भटक सकता है..किंतु अनुमेहा ऐसा नही कर सकती है..उसे तो लोगो के सामने खुश रहना पड़ेगा..समय से हर काम करना पड़ेगा..खाने का मन हो या ना हो किंतु खाना पड़ेगा..अगर रोना आए भी तो उसको छुपाना पड़ेगा..
अनुमेहा के विवाह को अब कुछ ही दिन रह गये है..एक-एक करके उसके सारे सगे संबंधी आने शुरू हो गये है..उसके घर पे अब चहल-पहल बढ गयी है..झालर बत्ती वालो ने आके बत्तियाँ लगा दी हैं..एक तरफ कोने मे ढेर सारे पत्तल और पूरवे रखे हुए है..शामियाने वाले शामियाना लगाने के लिए उपयुक्त जगह तलाश रहे है..विवाह की तैयारियाँ जोरो पे है..खूब हँसी मज़ाक चल रहा है..सब लोग बहोत ख़ुश है..सिर्फ़ वही इंसान खुश नही है..जीसके लिए ये सब तैयारियाँ हो रही हैं..
कैसी अजीब बिडम्बना है..और कैस अजीब दुनिया है ये..जहा पे निर्जीव पत्तल पुरवों को प्राथमिकता मिलती है..सजीव और सवेदनशील हृदय कोई नही देखता है..
हिंदू धर्म एक ऐसा धर्म है..जहा पे विवाह को एक उत्सव की तरह मनाया जाता है..और इस उत्सव का अंतराल कम से कम दस दिन का तो होता ही है..ढेर सारे रीति-रिवाज और ढेर शारी रस्मे..ये शारी रस्मे हमारे पुर्वजो ने शायद इसलिए बनाई है की..धीरे-धीरे करके और इतने सारे रीति-रिवाजो से गुजर कर..आप को एहसास हो जाए की आप कुछ विशेष कर रहे है..की आपका ये नया रिश्ता अटूट बने..की आप मजबूत बने..की आप आप कुछ गंभीर ज़िम्मेदारियाँ आने वाली है और आप उसके लिए मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार हो जाए..
अनुमेहा के भी विवाह की रस्मे शुरू हो गयी हैं..सुबह से लेकर रात तक गाना-बजाना..ढेर सारी पूजा-पाठ और अनेक तरह के अनगिनत प्रपंच..वो तो अनुमेहा को इन सब प्रपंचो मे उपस्तिथ रहना पड़ता ..किंतु उसकी परीक्षा चल रही थी..इसलिए उसको तभी बुलाया जाता जब उसकी ज़रूरत होती..अन्यथा वो अपने कमरे मे ही रहती..उस दिन भी देर रात तक रस्मो रिवाज चलते रहें..जब सब लोग खाली हुए तो रात के १० बज गये थे..सबने खाना खाया फिर अनुमेहा अपने कमरे मे आ गयी..और बिस्तर पे लेट गयी..और सोचने लगी..शिशिर सही कहता था की हमे सबके लिए त्याग करना पड़ेगा..आज सब लोग कितने उत्साह से उसके विवाह की तैयारियों मे लगे हुए हैं..कितना ही खुशनुमा माहौल है..हर तरफ हसी ठिठोली चल रही है..ये जो उसके माता-पिता को पूर्णता का एहसास दिला रहा है...जो उन्हे समाज मे एक उत्कृष्टता दिला रहा है की उनहोने ने अपनी ज़िम्मेदारी का निर्वाह बहोत ही अच्छे से किया..जो उनके चेहरे पे संतुष्टि का भाव है..वो इसी त्याग के कारण है..यदि मै और शिशिर इसकी परवाह नही करके कुछ भी अन्यथा करते तो क्या आज ये सब कुछ संभव था..और समाज की बात छोड़ दे तो क्या माँ और पिताजी के चेहरे पे इतनी संतुष्टि आती..
शिशिर मेरे प्राण तुमको कोटि-कोटि धन्यवाद ..तुमने मुझे बल दिया और मुझे कमजोर होने से बचा लिया.
आज चाँद पूर्णतया खिला हुआ है..चाँद की किरणे खिड़की से होके अनुमेहा के पलंग तक आ रही थी..अनुमेहा को जब लेटे-लेटे नींद नही आई तो वो आके खिड़की पे बैठ गयी..जिसपे वो और शिशिर हमेशा बैठा करते थे..जिसपे उन्होने ने ना जाने कितनी अनगिनत रातें साथ गुजारी है..
बाहर चारो तरफ चाँदनी बिखरी है..आकाश पूर्णतया स्वच्छ है..और अनगिनत असंख्य तारे जगमग-जगमग कर रहे है...अनुमेहा के चेहरे पे चाँदनी पड़ रही है..अन्य दिनो की तरह यदि शिशिर होता तो वो अनुमेहा को एकटक देखता रहता बिना पलके झपकाए बिना कुछ कहे..और फिर धीरे से अपने होंठ उसके कान के पास लाकर कहता है मेहा तुम बहोत सुंदर हो..और अनुमेहा धीरे से शरमा के कहती "धत्त..बुद्धू".. किंतु आज तो कोई नही है..सब कुछ वही है..वही चाँदनी, वही तारें, वही टेसू का पेड़ वही खिड़की..किंतु आज जैसे सब कुछ निर्जीव है..आज कोई नही है ये कहने वाला की मेहा तुम बहोत सुंदर हो..अनुमेहा की आँख भर आयी..
अक्तूबर का महीना पहाड़ो मे पतझड़ का महीना होता है..अक्तूबर मे पतझड़ शुरू होता है और नवम्बर के अंत तक सारे पेड़ो के पत्ते गिर जाते है..टेसू के पेड़ के भी सारे पत्ते गिर गये है..चाँदनी रात मे जब उसकी टहनियो पे चाँद की किरण पड़ती है तो उसकी डालियां चमकने लगती है..ऐसा लगता है जैसे किसी ने चाँदी का कोई पेड़ बना के खड़ा कर दिया हो..शिशिर देखो ये टेसू का पेड़ कितना सुंदर लग रहा है..काश तुम यहाँ होते ये देखने के लिए..फिर वो अपने हाथ घुटने पर रखकर और उनको मोड़ के बैठ गयी और आकाश की तरफ देखने लगी..और उन तीन तारों को देख के धीरे से कहा "तुम मेरे साथ हमेशा हो.."
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अब अनुमेहा के विवाह को तीन दिन रह गये है..और आज शिशिर और अनुमेहा दोनो की परीक्षा समाप्त हो गयी..उनकी परीक्षा कैसी हुई..?क्या शिशिर को विश्वविद्यालय मे प्रवेश मिलेगा..?क्या अनुमेहा के अच्छे अंक आएँगे..? ये ऐसे प्रश्न है जिनका उत्तर भविष्य की कहानियों मे मिलेगा..
आज अनुमेहा जल्दी से घर वापस आ गयी परीक्षा देकर...और आज वो सुबह से ही बहोत खुश है..क्योकि आज शिशिर जो आ रहा है..
शिशिर अनुमेहा के घर विवाह मे क्यो आ रहा है..क्या इससे किसी को आपत्ति नही होगी..अनुमेहा और शिशिर एक-दूसरे को कैसे जानते है..इन सारे प्रश्नो का उत्तर जानने के लिए..अगली कुछ कहानियो मे हम भूतकाल की बाते करेंगे..उस समय की बातें करेंगे जब शिशिर और अनुमेहा पहली बार मिले..जब वे अबोध और अंजान दुनिया की परिपक्वता से दूर..सिर्फ़ मासूम बच्चे थे...