एक अंतराल, एक अर्ध दशक अनगिनत बसंत.
और ऐसी अनिश्चितता की स्थिति.
शायद जीवन की नवीन दिशा.
या आज फिर एक नयी परिभाषा.
रिश्ते मे अस्थिरता असंतुष्टि और
अपरिपक्वता.
और फिर भी अनत अटूट प्रेम.
शायद आदर्श प्रेम.
और विकाश के कारक.
कितना कुछ अनकहा है अभी.
कितना कुछ अनसुना है अभी.
जाने कितनी परते.
और सब मे प्रेम, सब मे नवीन उमंग, नवीन
आशा.
कहतें है..जीवन प्रवाह शील है.
हर घड़ी प्रवाह शील है.
व्यर्थ की बाते है.
तुम प्रवाह शील हो.
हमारा रिश्ता प्रवाह शील है.
हर वो जुड़ाव प्रवाह शील है
जिसमे प्रेम है..
जुड़ाव से जीवन आनंदित है,
उन्मादित है,
गतिमान है.
अन्यथा..जीवन व्यर्थ है
शिथिल है.