मेरे
देवता
तुम्हारी
चाँदनी मिली,
सहेज
के रख दिया इसको कही हृदय के कोनो मे,
जैसे
रखें है वो साथ बिताएँ,
अनगिनत
चाँदनी रातें.
जानते हो शिशिर अब
चाँद
की किरने शीतल नही लगती,
मन
का कही एक कोना,
जलने
लगता है.
लेकिन फिर भी एकटक देखती
रहेती
हू चाँद को,
ना
जाने क्यो इस जलन से,
मन
को सुकून सा मिलता है.
कितना कुछ बदल गया
तब
से अब तक,
किंतु
एक ये चाँद ही तो है,
जो
नही बदला.
कभी
कभी महकती है ये चाँदनी
तुम्हारी
खुशबू के जैसे,
बहोत
अच्छा लगता है,
लेकिन
पता हैं शिशिर,
अब
तकिये से तुम्हारे बालों की ख़ुशबू
नही
आती है...
अच्छे से रहना मेरे प्राण ,
---तुम्हारी और सिर्फ़ तुम्हारी मेंहा.