Friday, September 12, 2014

विवाह


चलो उठाओ तुलिका प्रिये,
आओ रंग भरतें हैं.

देखो कितना कोरा
सब कुछ नवीन है,
वो कौन सा है प्रेम वाला रंग प्रिये,
वही चुनना, हाँ सिर्फ़ वही चुनना,
मिल कर दोनो साथ-साथ रंगते है.
चलो उठाओ तुलिका प्रिये,
आओ रंग भरतें हैं.

ये सितारों से सज़ा आसमाँ,
ये मंद बह रहे हवाओ का कारवाँ,
चाँद और अग्नि को साक्षी मानकर,
दो जीव सात जन्मो तक
साथ-साथ चलने का नीव रखते है,
चलो उठाओ तुलिका प्रिये,
आओ रंग भरतें हैं.

नवीन स्वप्न इन नैनो ने जो तुम्हारे देखे हैं
देखो कैसे पलके नीची है
फिर भी चमक रहे है,
ये अधर जो सकूचाए से है
देखो कैसे मंद मंद मुस्काते है,
चलो उठाओ तुलिका प्रिय,
आओ रंग भरतें हैं.

सब कुछ नूतन है सब कुछ नया है,
थोड़ा असमंजस और थोड़ी अधीरता है,
किंतु एक दूसरे का हाथ थामे,
हम एक दूसरे मे विश्‍वास धरते हैं,
चलो उठाओ तुलिका प्रिये,
आओ रंग भरतें हैं.

 -अतृप्त




Tuesday, September 24, 2013

अनुमेहा का पत्र शिशिर के लिए

मेरे देवता
तुम्हारी चाँदनी मिली,
सहेज के रख दिया इसको कही हृदय के कोनो मे,
जैसे रखें है वो साथ बिताएँ,
अनगिनत चाँदनी रातें.

जानते हो शिशिर अब
चाँद की किरने शीतल नही लगती,
मन का कही एक कोना,
जलने लगता है.

 
लेकिन फिर भी एकटक देखती
रहेती हू चाँद को,
ना जाने क्यो इस जलन से,
मन को सुकून सा मिलता है.

कितना कुछ बदल गया
तब से अब तक,
किंतु एक ये चाँद ही तो है,
जो नही बदला.

कभी कभी महकती है ये चाँदनी
तुम्हारी खुशबू के जैसे,
बहोत अच्छा लगता है,
लेकिन पता हैं शिशिर,
अब तकिये से तुम्हारे बालों की ख़ुशबू
नही आती है...



अच्छे से रहना मेरे प्राण ,
                           ---तुम्हारी और सिर्फ़ तुम्हारी मेंहा.


Tuesday, September 4, 2012

चाँद - चाँदनी और शिशिर का पत्र मेहा के लिए




मेरे आराध्य,
क्या लिखू ,
अनगिनत और अनंत बाते हैं बताने के लिए,
कितना कुछ कहा और अनकहा है सुनाने के लिए,
किन्तु तुमसे तो कुछ भी अज्ञात नहीं,
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तुम्हारी यादों में अनगिनत रातें जागकर,
हमने थोड़ी सी चांदनी बटोरी हैं,
"इस बार पत्र में ये चाँद की चांदनी,
भेज रहा हूँ"

-अन्नंत काल से सिर्फ और सिर्फ तुम्हारा
शिशिर