Tuesday, September 4, 2012

चाँद - चाँदनी और शिशिर का पत्र मेहा के लिए




मेरे आराध्य,
क्या लिखू ,
अनगिनत और अनंत बाते हैं बताने के लिए,
कितना कुछ कहा और अनकहा है सुनाने के लिए,
किन्तु तुमसे तो कुछ भी अज्ञात नहीं,
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तुम्हारी यादों में अनगिनत रातें जागकर,
हमने थोड़ी सी चांदनी बटोरी हैं,
"इस बार पत्र में ये चाँद की चांदनी,
भेज रहा हूँ"

-अन्नंत काल से सिर्फ और सिर्फ तुम्हारा
शिशिर  






2 comments:

  1. loved this ..

    Engineer by profession...Poet/Writer by choice...

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    1. Thank you Arun...It's so long time..kaisa hai tu...:)

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