Friday, December 25, 2009

इस बार कोई कहानी नही..मै ये जो लिख रहा हूँ ये मुझे शायद अनुमेहा और शिशिर की कहानी लिखने के पहले लिखना चाहिये था..
जब मैने शिशिर और अनुमेहा की कहानी लिखनी शुरू की थी.. तो मैने सोचा था एक छोटी सी कहानी लिखूंगा.. किंतु जब मैने आखरी पत्र लिखा तो मुझे लगा की मुझे और भी लिखना चाहिए..

मेरी-बात
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तो मै ये क्यो लिख रहा हूँ..??

ये मै लिख रहा हूँ कहानी की भूमिका स्पष्ट करने के लिए...

यह एक प्रेम कहानी है.. आप लोगो ने बहोत सारी प्रेम कहानियाँ पड़ी होंगी जिसमे नायक नायिका मिलते है..फिर प्रेम होता है..फिर सुखद सपने आते है फिर बातों और वादों के सिलसिले चलते है ..फिर सामाजिकता मुखर होती है..और फिर वियोग.. और वियोग के बाद क्या होता है..ये एक बड़ा प्रश्न है..

किंतु मेरी ये जो कहानी है इसका आरम्भ ही शिशिर और अनुमेहा के वियोग से होता ..अनुमेहा की शादी कही और हो जाती है ..उसके बाद शिशिर और अनुमेहा की मनोस्थिति कैसी होती है,उसके बाद शिशिर क्या करता है..क्या अनुमेहा अपनी ज़िम्मेदारियों का निर्वाह कर पाती है..क्या शिशिर अपने भविष्य का निर्माण कर पाता है..ऐसे बहोत सारे प्रश्नो का उत्तर आपको इस कहानी मे मिलेगा..

कोई रिश्ता मनुष्य को कितना उत्कृष्ट बना सकता है..ये उसकी कहानी..

किसी भी रिश्ते की सार्थकता तभी है ..जब उससे सभी को खुशी मिले..जब उससे आप सभी को जोड़ सके ..सिर्फ़ स्व की स्वार्थपूर्ति कभी भी किसी रिश्ते का उद्‍देश्य नही होनी चाहिए..यदि कोई रिश्ता सिर्फ़ स्व की स्वार्थपूर्ति करता है तो उससे क्षणिक सुख तो मिलेगा किंतु निकट भविष्य मे वो रिश्ता आपको कष्ट ही देगा.. ये बात शिशिर और अनुमेहा को बहोत अच्छे से पता थी..उन्होने समाज के लिए अपने प्रियजन के लिए और अपने रिश्ते के प्रेम की उत्कृष्टता के लिए त्याग किया..ये कहानी उनके इसी त्याग की है..

मिलना या नही मिलना ये तो नीयती है..किंतु यदि परमपिता ने आपको कुछ अमूल्य दिया है..तो आप उसका जीवन भर मूल्य करे ये बहोत ज़रूरी है..यदि आपने किसी से सच्चा प्रेम किया है तो वो जीवन भर आपके साथ रहेगा..जीवन के हर दोराहे पे आपको रास्ता दिखाएगा..इस कहानी मे भी शायद कुछ ऐसी ही बात करेंगे..

यदि आपने किसी से प्रेम किया और आप उससे नही मिल पाए तो तो सब कुछ समाप्त नही होता है..आपने उस रिश्ते से क्या सीखा..उस रिश्ते से मिले ज्ञान से आप अपना और दूसरो का जीवन कैसे उत्कृष्ट बनाते है..ये उसकी ही कहानी है..

शेष सभी बाते कहानी मे...

उस आखरी रात शिशिर ने अनुमेहा को मंगल-सूत्र दिया था और उसने एक कविता भी लिखी थी..इस बार पड़ने के लिए ये कविता...

मंगल-सूत्र
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मन की असीमित गहरायी से
हमने छोटे छोटे मोती चुने.
विशाल आकाश की परछाई से
ठंडी ठंडी पुरवाई चुनी.
चमकते सूरज की ज्योति निकाली
चाँद की शीतलता लेकर,
और तारों की झीलमीलता लेकर,
उपवन से कुछ पुष्प चुने,
और दोनो हाथो से कल्पना को बुने.
बीते दिनो की मधुर स्मृतियों को
और कभी ना भूलने वाली तिथियों को,
हमने मोतियों मे समाहित किया,
काले काले मोतियों को
चाँदी मे पिरोकार,
कल्पित - अकल्पित सपनों को
चमकते हुए बिन्दुओ मे सँजोकर,
हमने अपने अटूट रिश्ते सूत्र को
और घनिष्टता दी,
आँखो से झरने वाले आँसुओ से धुलकर,
हृदय की पीड़ा से गुथकर
हमने हमारे मंगल के लिए सूत्र तैयार किया,
और काँपते होंठो से
किंतु मानसिक दृढ़ता से युक्त
हाथो से तुम्हे मंगल-सूत्र दिया.

Monday, November 23, 2009

आखरी पत्र

उस आखरी रात को ये निर्णय हुआ की अनुमेहा वो विवाह करेगी उसके बाद शिशिर और अनुमेहा एक दूसरे से फिर कभी मिले या नही ये तो रहस्य का विषय है..और इस रहस्य का अनावरण भविष्य मे होगा.. किंतु..उसके बाद उन्होने एक दूसरे को विवाह के पहले एक पत्र लिखा.. उनका लिखा ये आखरी पत्र ही इस बार की कहानी है....


आखरी पत्र ( अनुमेहा)
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मेरे देवता,
कितने ही अनगिनत पत्र मैने तुमको लिखे ....आज शायद ये अंतिम हो.
तुम तो जानते हो हमेशा ही अनगिनत बातें होती है तुम्हे बताने के लिए किंतु ...सोच रही हूँ कहाँ से शुरू करू...??

याद है तुम्हे वो पिछली सर्दिया जब तुम दो महीने घर नही आए थे ..और मुझे बुखार हो आया था..
तब तुम्हारी कितनी याद आयी थी...और जब तुम दो महीने बाद आए तो तुम्हे देख के मै तो रोने ही लगी थी . तुमको याद है ना शिशिर..??

लेकिन पता है शिशिर अब रोना नही आता..तुम्हारी बहोत याद आती है फिर भी रोना नही आता है..
कितने दिन हो गये तुमको देखे हुए...क्या हम अब कभी नही मिलेंगे शिशिर...???


उस आखरी रात तुमने कहा की मुझे ये विवाह करना ही होगा...और मैने कोई प्रतिरोध नही किया...मैने तुम्हारे कहे का कभी प्रतिरोध किया है क्या शिशिर..??

किंतु मेरे जीवन के सुकुमार स्वप्न मुझे ये तो बताओ की अगर ये तन मै उसको दे भी दू ..किंतु ये आत्मा तो तुम्हारी ही रहेगी ना ...ये तो अब और किसी की कभी हो ही नही सकती...तो क्या ये उससे अन्याय नही होगा..बोलो शिशिर..??

परीक्षा के इन आख़िरी क्षणो मे मै कमजोर नही पड़ना चाहती...मै तुमको दुखी और परेशान भी नही करना चाहती..
किंतु मेरे देवता ...हमने जो पवित्र भविष्य के सपने देखे थे .वो क्या सिर्फ़ दिवा स्वप्न थे.??हमने स्वर्ग लोक मे बैठ के जो आत्मा के संगीत सुने थे ...वो क्या सिर्फ़ भौतिक सुरो की तान थी...??

मेरे प्राण हमने एक अनाम रिश्ते का पौधा लगाया..और उसको प्रेम की अनगिनत जल धारा से सिंचित किया…अनगिनत तूफान आए ...अनंत झंझावत आए ...किंतु हमने इस पौधे को कभी टूटने नही दिया..कभी सूखने नही दिया.. हमने हमेशा इस रिश्ते को सहेजा है ..जैसे हृदय मे यादों को सहेजते है....तो अब बोलो शिशिर क्या उस पौधे को जो अब पेड़ बन गया है सूखने दे..और क्या उन सहेज़ी हुई यादों को बिसार दे जैसे कभी कुछ था ही नही..??

मेरे आधार ..चलो मै हर एक बात विस्मृत कर देती हूँ..तुम्हारी हर बात मान लेती हूँ..कर्तव्यो के लिए चलो हमारे प्रेम की आहुति देती हूँ..किंतु मै आम्रपाली (आम्रपाली उनके कल्पित बेटी का नाम है..की यदि कभी उनकी शादी होती तो..अपने बच्चे का नाम वो आम्रपाली रखते) को कैसे विस्मृत कर दू..कैसे ये स्वीकार कर लू की वो हमारे भूत की सिर्फ़ एक कल्पना है..की वो कभी अस्तित्व मे नही आएगी..जिसको हमने रिश्ते मे हर क्षण जीया है..जिसको हमने उन अनगिनत रातो मे महसूस किया है..प्रेम के उन पवित्र क्षणो मे जिसको हमने परमपिता से माँगा है..जो हमारे आत्मा के साथ रची बसी..तुम बोलो शिशिर मै उसको कैसे विस्मृत कर दू..???

तुम्हारी बहोत याद आती है..तुमको भी तो मेरी याद आती होगी ना शिशिर...???

अब और क्या कहूँ शिशिर..पता है अब चाँद की किरणे शीतल नही लगती ..और जब भी ये ख़याल मन मे आता है की अब तुम्हारी आँखो से मै चाँद नही देख पाऊँगी ..मेरा हृदय उदास हो जाता है...किंतु तुम बिल्कुल चिंतित नही होना मेरे प्राण
ये छणिक कमज़ोरी है..तुम्हारी मेहा तुम्हारे आदर्शो को कभी हारने नही देगी..

अच्छे से रहना..और सदा अपने सदगुणों के सुगंध से संसार को सुवासित करते रहना.


तुम्हारी और सिर्फ़ तुम्हारी
मेहा






आखरी पत्र(शिशिर)
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मेरे भाग्य,
तुम्हारे ये अनगिनत प्रश्‍न ...मै क्या उत्तर दूँ...
तुम हमेशा मेरा आत्मबल रही हो....क्या बिना तुम्हारे सहयोग के ये संभव था..क्या इतना महत्वपूर्ण निर्णय मै कभी अकेले ले पता..??

मेरे सुख दुख के साथी तुम ये मत सोचना की तुम्हारे जाने के बाद तुम्हारा ये शिशिर अकेला हो जाएगा...साँस से प्राण की तरह..पुष्प से गंध की तरह तुम इस आत्मा मे रची बसी हो..तुम मुझसे कभी अलग नही हो रही हो..और कभी अलग होगी भी नही...तुम हर छड़ मेरे साथ हो..मेहा ..

मेरे जीवन की अमूल्य निधि तुम बिल्कुल भी चिंतित नही होना.. ये तो हमारे भौतिक जगत की कुछ ज़िम्मेदारियाँ है जिनका हम निर्वाह कर रहे है ..इस समाज के लिए अपने परिवार के लिए और जन्मो जन्मो से चली आ रही मान्यताओं के लिए हम त्याग कर रहे है..मेहा ये सिर्फ़ भौतिक वियोग है..हमारा रिश्ता तो आत्मिक है...जो अदृश्य और अटूट जीवन सूत्र से बना है..

मेहा तुमने पत्र मे लिखा था की शिशिर मै आम्रपाली को कैसे भूला दूँ.. मेहा तुमने एकदम सत्य कहा हम लोग आम्रपाली को कभी भी नही भूल सकते ..जो हमारे रिश्ते की एक मात्र इच्छा ..हमारा एक मात्र सपना थी...बस ये समझ लो मेहा..की इंसान के जीवन की हर इच्छा और हर सपने पूरे नही होते है..

मेहा तुमने जीतनी बातें अपने पत्र मे कही है सब सत्य है..मेहा हम मिले ..हमने एक पवित्र रिश्ता बनाया ...हमने उसको अनगिनत चाँद तारों से सजाया..अनगिनत फूलों से महकाया...कितनी दुविधा हुई ..कितनी असुविधा हुई ..किंतु हमने एक दूसरे का साथ कभी नही छोड़ा...जीतनी ठोकरे लगी ..हम और उतनी ही घनिष्ठता से जुड़ते गये..
मेहा हम एक दूसरे का साथ आज भी नही छोड़ रहे है..मेहा हम दूर हो रहे है ...अलग नही.

मेहा तुमने लिखा था ..शिशिर उन यादों को कैसे भूला दूँ ..मेहा कुछ भी भूलना नही ...मेहा सिर्फ़ ये फ़र्क समझना है की ..
कर्तव्य क्या है..और सौन्दर्य क्या है..मेहा ये जो हमारी दुनिया है ये बड़ी ही नाज़ुक मुलायम सौन्दर्य की दुनिया है..जिसको हमने प्रेम से अपने हृदय की अनंत गहराइयों मे सहेजा है.. जिसको यदि हमने प्रेम से नही सहेजा..तो वो तुरंत बिखर जाएगी....और मेहा फिर हम भी बिखर जाएँगे..इसलिए मेहा सौन्दर्य की दुनिया..आत्मा की दुनिया है..
इसको भौतिक जगत से नही मिलाना है..

जो... कर्तव्यो की दुनिया है ..वो भौतिक जगत की दुनिया है...जो अत्यंत कठोर है..यहाँ मन कोई नही देखता है ..यहाँ सिर्फ़ कर्तव्य का महत्व है..तो मेहा कर्तव्य अलग है सौन्द्र्य अलग है ..इस बात का हमेशा ध्यान देना है.

और क्या कहूँ मेरे आराध्य..तुम्हारे बिना इस जीवन की कल्पना भी संभव नही है..जब भी ये सोचता हूँ..की तुम जा रही हो
मन उदास हो जाता है..आँख भर जाती है..हृदय का स्पंदन मंद पड़ जाता है..तुम तो जानती हो ना मेहा जब मुझे घबराहट होती है तो मेरे दिल की धड़कने..धीमी हो जाती है...

मेहा सच मे तुम्हारी बहोत याद आती है...और चाँद की किरण अब मुझे भी शीतल नही लगती है..

अच्छे से रहना...



अनंतकाल से सिर्फ़ तुम्हारा
शिशिर

Wednesday, November 11, 2009

आखरी रात

आखरी रात
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याद है मेहा जब हम पहेली बार मिले थे ...
हूँ.......

तारो से सजी चाँदनी रात है,और कोई दिन होता तो ये रात बड़ी ही कोमल और मुलायम उन अनगिनत प्रेम भरी रातों की तरह होती किंतु आज तो सिर्फ़ खामोशी है जैसे सब कुछ रुक सा गया हो. उन दोनो के बीच कितनी बातें रहेती थी कितनी ही अनगिनत रातें ख़त्म हुई किंतु बातें नही, किंतु आज तो जैसे शब्द ही खो गये है आज सिर्फ़ खामोशी है.रात के एक बज रहे है,चारो तरफ सन्नाटा पसरा है,सब लोग सो रहे है बस ये दो जीव है जीनकी आँखो मे नींद नही है.

शिशिर ने फिर से कहा, मेहा याद है ना जब हम पहेली बार मिले थे...
अनुमेहा: हाँ ...(होंठ काँप रहे थे)

मेहा ने शिशिर का हाथ अपने हाथ मे ले करके कहा मुझे किसी और से शादी नही करनी है.
शिशिर ने कोई उत्तर नही दिया....
शिशिर तुम सुन रहे हो ..मुझे किसी और से शादी नही करनी है ...
शिशिर ने मेहा का चेहरा अपने हाथो मे लेके उसकी आखों मे देखा...
और किसी ने कुछ नही बोला ...दोनो खामोश रहे बहोत देर तक.....
फिर शिशिर ने बोला:"मेहा...मेहा...तुम्हे पता है तुम मुझे जितना प्यार करती हो उतना कोई किसी को नही करेगा...उतना प्यार तो मै भी नही कर पाया कभी...किसी के अंदर उतनी सामर्थ्य नही है. प्यार क्या होता है ये हमने तुमसे ही सीखा है..
तुम्हे याद है मेहा एक बार तुमने कहा था की ये जो हमारा प्यार है ये हमारी अपनी दुनिया है..हमारे अंदर की दुनिया..और एक बाहर की दुनिया है जो हमारे कर्तव्यो की दुनिया है.
तो मेहा जब ये बाते तुमने ही मुझे सीखाई की ...कर्तव्य से अधिक महत्व की कोई वस्तु नही तो आज क्यो कमजोर पड़ती हो.माना की हमने बड़े प्यार से इस प्रेम को सीचा है..इसमे ढेर सारे फूल लगाए ..रीश्तो के हर अंधेरे को हमने टिमटिमाते तारों से सजाया है..किंतु हमारा ये प्रेम जिसमे हमने हमेशा आदर्शवादिता की बात की है ..क्या उनका अब कोई मतलब नही है..
मेहा हम एक दूसरे के है ..और ये परम सत्य है..इसको कोई परिवर्तित नही कर सकता है..और हम हमेशा एक दूसरे के रहेंगे..चाहे हम निकट हो या दूर."

अनुमेहा ने कहा : "हाँ शिशिर हमे त्याग करना होगा..परमपिता ने हमे मिलाया..हमे इतने सारे सपने दिए..इतनी सारी खुशिया दी..अब ये हमारा समय है देने का इस समाज को इस दुनिया को..ये समय है...ये समय है...(अनुमेहा के होंठ बुदबुदाने लगे) और उसकी आँखे भर आई.
शिशिर ये जो अनगिनत राते हमने जाग कर अथक परिश्रम कर छोटे छोटे टुकड़ो को जोड़ कर ये रिश्ता बनाया है..ये जो हमने अपनी सारी जींदगी इस रिश्ते के लिए अर्पण कर दिया ..क्या वो सब व्यर्थ था..क्या वो सब इसलिए था की इस रात के बाद हम वो सब भूल जाए...बोलो शिशिर चुप क्यो हो उत्तर दो?"

शिशिर ने कुछ नही बोला..उसने मेहा के उजले बगुले जैसे पैरो को अपने दोनो हाथों मे ले लिया..और अपने होंठ उसके पैरो पे रख दिए ..मेहा ने कुछ नही बोला ना ही उसने अपने पैर ही खीचे...दोनो शांत बहोत देर तक वैसे ही बैठे रहे..

अब धुँधलाका छटने लगा.. ख़त्म हो गयी वो आखरी रात और ख़त्म हो गया वो प्रेम भरी अनंत रातों का सिलसिला..नही ख़त्म हो पायी तो उनकी बाते..नही ख़त्म हो पाया तो वो अनंत विवाद जो चला आ रहा है अनंत काल से ..
अब तो सिर्फ़ वियोग है...विछोह है और पीड़ा है....

Monday, March 9, 2009

होली

आप सभी लोगो को होली की रंग बिरंगी शुभकामनाये ...होली के इन सुन्दर रंगों की तरह आप सभी लोगो का जीवन खुशियों के अनेक रंगों से भर जाये ...

इन्तेज़ार

हम इन्तेजार कर रहे है,
मौसम बदले गए फिजाये बदल गयी,
शिखाये फिर से सजी लताए बदल गयी ,
पर तुम नहीं आये.
हवाओ में भी नमी आ गयी,
धुप भी अब हलकी हो गयी ,
घनघोर घटा छा गयी,
रिमझिम फुहारे धरती स्पर्श पा गयी,
फिर भी तुम नहीं आये.
शाम अब कुछ गेहेराने लगी,
तारे आकाश में टिमटिमाने लगे,
चाँद पुरे शबाब पे आया,
रात का साया जग पे छाया,
फिर भी तुम नहीं आये.
सुबह की हल्की ओस से,
जब हमारी देह धूलि ,
हमें होश आया ,
रात बीत गयी सुबह हो आया,
फिर भी तुम नहीं आये .
मौसम बदले फिजाये बदले,
चाहे रात जाये सुबह आये ,
ऐसे ही अनगिनत बसंत,
हम तुम्हारा इन्तेज़ार करेंगे ,
देखते है पहेले कौन आता है,
तुम या मृत्यु ….????

Thursday, March 5, 2009

AAP

Bina tumhare jeevan kalpana me bhi kalpit nahi ,

Bina tumhare madhuban khilkar bhi pushpit nahi,

Bina tumhare ye nain mohit hokar bhi nirmal nahi,

Bina tumhare ye mann santript hokar bhi santusht nahi,

Mann ki peeda tann ki agni aur hriday ki pyaas ho,

Sham subah ki parchayi ho aur ekaant ki tanhayi ho,

Sawan ki rimjhim boondo me ho,

Basant ke suwaseet pulkeet phoolo me ho ,

Chand ki sheetalta me ho aur taro ki jhilmilta me ho,

Nischhal nishkapat prem tum ho,

Saral santript jeevan tum ho,

Manav mann ki tripti ho ,

Manav jeevan ki sanskreeti ho,

Tum praan tum tanmayta ho,

Mann mastishk ke geet tum hi ho,

Saral viveki sach sach kahu ,

Tum hi mere preet ho.