एक रात अनुमेहा ने शिशिर से पूछा:
ये इंद्रधनुषी प्रेम कैसा होता?
शिशिर ने अनुमेहा का हाथ अपने हाथो मे
लेकर और उसकी आँखो मे देखकर बोला:
शायद तुम्हारे स्पर्श के जैसा होता होगा,
कोमल,निर्मल,
बिल्कुल पवित्र.
तुम्हारे हृदय की धड़कनो के जैसा होता होगा,
अनगिनत,निरंतर,
और गतिशील.
तुम्हारे आँखो मे बसे सपनो की तरह होता होगा,
सुक्ष्म,अदृश्य,
किंतु जीवन-उम्मीदों से भरा
बिल्कुल महत्वपूर्ण.
तुम्हारे अधरो पे बिखरे मुस्कान की तरह होता होगा,
निश्च्छल,निष्कपट,
बिल्कुल स्वच्छन्द.
चाहे जैसा भी होता होगा,
किंतु एक बात तो निश्चिंत है,
हमारे रिश्ते के जैसा ही होता होगा,
सुख-दुख, हँसी-खुशी, प्यार-मनुहार
और अनंत इंतजार...
बिल्कुल सतरंगा...!!!!!
शिशिर मुस्कुराया..अनुमेहा हसी..
दोनों ने एक दुसरे की आँखों में देखा,
और इंद्रधनुष का एक रंग उनके चारो तरफ बिखर गया....
- अतृप्त
ख़ुसी?
ReplyDelete@ 2nd last para
ReplyDeleteJust a typo i guess...Thanks for bringing it up..:)
ReplyDeleterectify plz, i like reading your poems :)
ReplyDeleteDone..thanks..
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